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छेड़-छाड़: एक सामाजिक विकृति

नैतिकता का उलंघन करने का प्रलोभन बहुत ही शक्तिशाली होता है। लड़कों द्वारा लड़कियों के साथ की गई बदतमीजी, लड़कियों के जीवन को दुख:द बना देती हैं। एक भीड़ वाली बस में उन्हें चिकोटी काटी जाती है, टहोका मारा जाता है, धक्का दिया जाता है एवं उनकी बेइज्जती की जाती है। सड़क पर चलते हुये उनका पीछा किया जाता है एवं फब्तियां कसी जाती हैं। युवक सीटियां बजाते है व न केवल ढीठाई से उन्हें देखते हैं बल्कि गन्दी टिप्पणियां भी करते हैं। उन्हें यह सब चुपचाप सहन करना पड़ता है क्योंकि उनके विरोध करने पर शारीरिक उत्पीड़न भी हो सकता है।

यौन इच्छायें प्राकृतिक हैं किन्तु छेड़छाड़ की ओर रूख करना गलत बात है। लड़कियों के साथ छेड़खानी पुरुषों की यौन उत्तेजना की अभिव्यक्ति है। एक अभद्र टिप्पणी अथवा एक असभ्य उक्ति लड़कियों के साथ छेड़खानी का सबसे कोमल तरीका है। यह शारीरिक प्रहार एवं उत्पीड़न की सीमा तक जाता है। यह आँख मारने से प्रारम्भ होता है। अश्लील इशारे एवं भद्दी बातों से चिढ़ाना, ऐसे कुकृत्य करने वालों द्वारा अपनाया जाने वाले सामान्य माध्यम है। इनसे लड़कियों को मानसिक संताप होता है। ऐसा कहा जाता है कि लड़कियों के साथ छेड़खानी करना कामुकता का ही एक वियोजन है।

अगर समस्या के जड़ में जाए तो ये समझ में आएगा की, पूर्व से ही लड़कों एवं लड़कियों को एक-दूसरे से मिलने व बात करने की स्वतन्त्रता नहीं थी, अत: उनकी इच्छायें दबी रहती थी।  आज भी विपरीत सैक्स के साथ खुल कर मिलना व बातें करना हमारे समाज की दृष्टि में स्वीकार्य नहीं है तथा इसे वर्जना की दृष्टि से देखा जाता है। इस तरह से, निरूद्ध भावनायें छेड़खानी के रूप में अभिव्यक्ति पाती हैं तथा इसका एक कारण पश्चिमी सभ्यता का हमारे मानसिकता पर प्रभाव भी है।

कोई भी व्यक्ति चाहे वह आदमी हो या औरत, इतना असंवेदनशील नहीं हो सकता कि यह सब चुपचाप देख सके। लेकिन जब ऐसा कुकृत्य सड़क पे होता है, तो अक्सर दूसरी ओर राहगीर इन परिस्थितियों में उन्हें लज्जित देख कर आनन्द उठाते हैं। यह एक अपराध है, जिसे पुलिस अथवा अधिकारियों द्वारा गम्भीरता से नहीं लिया जाता।

छेड़छाड़ के अधिकतर मामले दर्ज क्यों नहीं होते? क्योंकि ज़्यादातर मामलों में महिलाएं ख़ुद ही इसे नज़रअंदाज़ कर देती हैं। उनका “छोड़ ना यार, ये तो रोज़ ही होता है” वाला रवैया उन्हें इसके ख़िलाफ़ क़दम उठाने से रोकता है। कोई महिला यदि पुलिस के पास शिकायत करने जाती भी है, तो शिकायत दर्ज करने के पहले पुलिस उससे बेकार एवं भद्दे सवाल पूछ कर एकबार फिर से उन्हे प्रतारित करती है। जिस कारण वो महिला दुबारा छेड़छाड़ तो सह लेती है, लेकिन पुलिस में रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती।

सच तो ये है कि महिलाएं यदि ख़ुद पहल करें और छेड़खानी का विरोध करने लगें, तो निश्‍चय ही सड़कछाप मजनुओं की हिम्मत घटेगी। अगर वो बिना डर के, अपने साथ बदतमीज़ी करने वालों को पलटकर जवाब देने लगें, तो दुबारा कोई मनचला उन्हें छेड़ने से पहले सौ बार सोचेगा ज़रूर।

छेड़-छाड़ से संबंधित कानून

ऐसा कई बार देखा गया है की पीड़ित महिलाएं अपने साथ हुए वाक़ये को भूल नहीं पातीं और बार-बार वही दृश्य उनकी आंखों के सामने आता रहता है, जिससे उनका डिप्रेशन बढ़ जाता है और कई बार ये आत्महत्या का कारण भी बन जाता है। इस तरह से छेड़छाड़ के मामलों की गंभीरता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, लेकिन ये बहुत दुख की बात है कि हमारे देश में इसके लिए कोई मज़बूत क़ानून नहीं है और जो क़ानून है वो बेहद पुराना व लचर है, जिसमें संशोधन की ज़रूरत है।

  • पब्लिक प्लेस जैसे सड़क, सिनेमा हॉल, बाज़ार जैसी जगहों पर यदि कोई आपको देखकर अश्‍लील गाने गाता है, कमेन्ट्स करता है या कोई ऐसी हरकत करता है जिसे देखकर आपको शर्मिंदगी महसूस होती है, तो ऐसा करने वाला व्यक्ति आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 294 के तहत सज़ा का हकदार है। शिकायत करने पर उसे तीन महीने की जेल या जुर्माना या दोनों सज़ा मिल सकती है।
  • किसी महिला/लड़की की बेइज़्ज़ती के इरादे से अगर कोई उसे छूता है, हमला करता है या ज़ोर-ज़बर्दस्ती करता है (कई बार ऐसे मामले बलात्कार की कोशिश के दायरे में आते हैं), तो आईपीसी की धारा 354 के तहत ये दंडनीय अपराध है। ऐसे में दोषी व्यक्ति को 2 साल की जेल या जुर्माना या दोनों सज़ा मिल सकती है।
  • यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की बेइज़्ज़ती के इरादे से कोई शब्द कहता है, आवाज़ निकालता है या कोई चीज़ दिखाकर महिला की निजता (प्राईवेसी) भंग करने की कोशिश करता है, तो ये अपराध आईपीसी की धारा 509 के तहत दंडनीय है। ऐसे में दोषी को 1 साल तक की सज़ा या जुर्माना या दोनों दंड मिल सकते हैं।

अन्य भी कई कानून इसकी वर्जना करते है परंतु इन सारे कानूनों के बाद भी, हमारी असंवेदनशीलता एवं अज्ञानता के कारण, आए दिन ऐसी घटना होती है, लेकिन शिकायत नहीं होती। हाँ, लेकिन हमारे फोन में उस छेरखानी का एक विडिओ जरूर होता है, जिसे हम अपने मित्रों को फॉरवर्ड करके रस लेते हैं।

एक प्रजातन्त्रीय राष्ट्र में कमजोर वर्ग को अगर सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती तो वह निर्भय नागरिक नहीं बन पायेंगे। अगर इस तरह अनैतिक अपराध होंगे और अन्त: विवेक की पुकार की अवहेलना होगी तो समाज पतित होता जायेगा। इसलिए लोगों के विवेक को जगाना होगा एवं इस समस्या का हल जड़ों से ही ढूढना होगा। स्त्रियों का सम्मान करना ही भारतीय सभ्यता की मांग है।

Devashish Mishra

बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले देवाशीष मिश्रा, वर्तमान में, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज्यूरिडिकल साइंसेज, कोलकाता से मास्टर ऑफ़ लॉ कर रहे हैं । उन्होंने अपनी स्नातक डिग्री के दौरान कई सामाजिक और राजनीतिक संस्थानों के साथ उत्सुकता से काम किया है। अपने स्कूली शिक्षा के समय से ही ज्वलंत मुद्दों पर बात करना और लिखना, देवाशीष को पसंद है। साथ ही पब्लिक स्पीकिंग और किताबों में ख़ास रूचि रखते हैं।
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