सशक्त महिलाएं - हिंदुस्तान का भविष्य
Trending

‘वो दिन’: महिला के विकास में रोड़ा

‘अरे यार, इस बार इतनी जल्दी हो गया।’, ‘अभी कुछ ही दिन पहले तो ख़त्म हुआ था।’, ‘देखना मेरे कपड़ों में दाग तो नहीं लगा है।’, अगर किसी को पता चल गया की पीरियड्स आए हुए हैं और दाग लग गया है, तो क्या होगा? एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया के बारे में पता चल जाएगा! क्यों?

एक महिला अपने मासिक धर्म को लेकर इतनी सचेत रहती है कि अक्सर ऐसी उक्त बाते उसके मन में डेरा डाले रहती है, जिसे वो खुलकर किसी को बात भी नहीं सकती (भूलिए मत आप पुरुष प्रधान समाज का हिस्सा है) और ऐसी बातों से महिलाओं की मनःस्थिति आहात होना आम है।

हालांकि, रिश्तेदारों का बात-बात पर, “खुशखबरी कब दे रहे हो“ पूछना आम है। लेकिन इसी खुशखबरी के लिए कुदरत ने औरत के शरीर में जो सिस्टम बनाया है, उस पर बात करने की पाबंदी है। यही वजह है कि “उन दिनों” के बारे में कई गलत धारणाएं हैं।

कई बार महिलाएं कहती हैं कि वह अपने इस्तेमाल किए हुए पैड को कचरे के नीचे छिपा देती हैं। जब दर्द होता है तो एक लंबी सांस लेती हैं और मुस्कुरा कर उसे भी छिपा लेती हैं। टैंपॉन? वो क्या होते हैं? इस शब्द को जोर से मत कहो। छिपा लो, अपने पर्स की पिछली जेब में, बाथरूम के किसी कोने में, और शॉपिंग बास्केट में सामान के नीचे। कैशियर कोई औरत ही हो तो अच्छा है। ये महज पीरियड नहीं, ये एक डर भी है, पकड़े जाने का। किस बात के पकड़े जाने का, वो मालूम नहीं।

किशोरावस्था से ही सबने यही बताया कि दाग को छिपाना होता है। वो हर महीने छिपने-छिपाने में ही उलझी रहती हैं और हमलोग पैंट पर सूक्ष्म दृष्टि डालकर भी दाग ढूंढ लेना चाहते हैं। हमें अगर जरा सा भी अहसास हो जाता है कि दाग लगा है, तो तब तक अपनी नजरें नहीं हटाते जब तक की दाग को ढूंढ नहीं लेते। अगर किसी अन्य महिला को भी दाग दिख जाता है, तो पहले वह अपने पास खड़ी फ्रेंड को यह बात बतायेंगी, उस पर गॉसिप करेंगी और फिर काफी देर बाद इसकी सूचना उस महिला को देंगी (जो कि पिछले कुछ मिनटों मे हसीं की पात्र बन चुकी है) की तुम्हारी पैंट पर दाग लगा है। लोग इसी में उस महिला की प्रतिभा को तलाशते हैं कि उनके लाख ढूंढने के बावजूद, वो कैसे उस दाग को छिपा सकती है।

पीरियड्स को लेकर इतना टैबू इसलिए बना हुआ है क्योंकि एक महिला खुद चाहती है कि ये बात किसी को पता ना चले, इसलिए हर कोई इस बारे में पता लगाना चाहता है। जिस दिन वो बार-बार अपनी पैंट चेक करना छोड़ देंगी, उस दिन से दाग ढूंढने का सिलसिला बंद हो जाएगा। जिस दिन वो अपने मेंसट्यूरल पेन को सिर-दर्द और बुखार का नाम देना बंद कर देंगी, उस दिन से ये उनसे बार-बार नहीं पूछा जाएगा की क्या हुआ है। जिस दिन वो सैनिटरी नैप्किन के पैकेट को अखबार के लपेटे से बाहर ले आएंगी, उस दिन से उनके हाथ में लिए बैग में ताक-झांककर अनुमान लगाना बंद कर दिया जाएगा कि उसमें क्या है।

इसलिए अगली बार अगर कोई उस दाग पर माइक्रोस्कोप लगाए, तो घबराएं नहीं, हिचकिचाएं नहीं। आराम से बताएं कि पीरियड्स हैं, तो दाग लग गया होगा। देखने वाले के नज़रिए में धब्बा है, इसलिए वो दाग है, इसलिए वो अभिशाप है।

Devashish Mishra

बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले देवाशीष मिश्रा, वर्तमान में, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज्यूरिडिकल साइंसेज, कोलकाता से मास्टर ऑफ़ लॉ कर रहे हैं । उन्होंने अपनी स्नातक डिग्री के दौरान कई सामाजिक और राजनीतिक संस्थानों के साथ उत्सुकता से काम किया है। अपने स्कूली शिक्षा के समय से ही ज्वलंत मुद्दों पर बात करना और लिखना, देवाशीष को पसंद है। साथ ही पब्लिक स्पीकिंग और किताबों में ख़ास रूचि रखते हैं।

2 Comments

  1. Well written…very deeply analysed and presented the obscure information that is expected to be acknowledged, accepted and respected by the society…

Back to top button