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एक साधारण प्रोफेसर ने मुफ़्त में पढ़ा बना डाला सैकड़ों IAS-IPS; डॉक्टर नारायण झा ने दिलाई मैथिली भाषा को राष्ट्रीय पहचान

मेहनत और सफलता दोनों एक दूसरे के पर्याय है | सफलता भी तभी मिलती है जब हौसलों में उड़ान होती है | फिर चाहें वह छोटी सी जगह से ही क्यों न निकल कर सामने आया हो |जी हां! आज हम बात ऐसे ही व्यक्ति की कर रहे है जिसने अपने मेहनत, लगन और परिश्रम से राष्ट्रीय पहचान स्थापित की | डॉक्टर नारायण झा ने अपनी मातृ भाषा को राष्ट्रीय पहचान दिलाई और संघ लोक सेवा आयोग तथा दूसरे राज्यों के लोक सेवा आयोग में छात्रों को मुफ़्त में मार्गदर्शन प्रदान कर उन्हें IAS – IPS, डीएसपी आदि के पद पर पहुँचाया | मैथिली भाषा को राष्ट्रीय फ़लक तक पहुँचाने में इनका काफी योगदान रहा |

डॉक्टर नारायण झा ने गरीबी को कमजोरी बनने नहीं दी


डॉक्टर नारायण झा का जन्म बिहार के सहरसा जिले में हुआ था | बेहद ही अति साधारण परिवार से आने वाले डॉक्टर झा का बचपन काफी गरीबी में बीता | उनसे हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि 10वीं क्लास तक उनके पैर में चप्पल नहीं था | 11वीं में जाकर उन्होंने कुछ पैसे जुटाकर एक हवाई चप्पल खरीदी | उनके पिता एक साधारण से किसान थे | लेकिन बच्चों को पढ़ाने के लिए काफी सजग थे | गरीबी इतनी थी कि कभी कभी पूरा परिवार रात में बिना कुछ खाएं भी सो जाता था | लेकिन डॉक्टर झा ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए आगे की पढाई जारी रखी |

पहले पटना साइंस कॉलेज से इंटर किया और फ़िर पटना कॉलेज से ग्रैजुएशन किया और वहीं से पोस्ट ग्रैजुएशन भी पूरा किया | वह अपने विश्वविद्यालय में गोल्ड मेडलिस्ट भी रहें | इसके बाद उन्होंने NET JRF की परीक्षा पास की और सरकार ने उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की | कुछ समय बाद साल 1996 में उनका चयन बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हो गया |

वह कहते है न कि जब मन में कुछ कर गुजरने की ललक हो तो सफ़लता सातों आसमाँ चीर कर मिलती है | इतनी गरीबी देखने के बाद डॉक्टर झा के लिए यह किसी करिश्मा से कम नहीं था | इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी | उनका कहना था कि जिस भाषा ने उन्हें सबकुछ दिया, जिस भाषा की वजह से वह आज प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है, उस भाषा के प्रति उनका सम्मान हमेशा के लिए था और रहेगा | इसके बाद उन्होंने भाषा के संघर्ष के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया | आंदोलन से लेकर रोड और चौराहे तक उन्होंने मैथिली भाषा के लिए संघर्ष किया | सड़क से संसद तक उन्होंने मैथिली भाषा के लिए लड़ाई लड़ी |

मैथिली भाषा को दिलाई राष्ट्रीय पहचान

अपनी भाषा के लिए उनका समर्पण इस बात से आंका जा सकता है कि उन्होंने लाठी डंडे भी खाएं | मैथिली भाषा आंदोलन के सबसे अग्रणी लोगों में एक डॉक्टर नारायण झा भी थे | उन्होंने पटना हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इसके लिए केस भी लड़ा | अंत में जाकर अटल बिहारी बाजपेयी जी की सरकार ने मैथिली को संविधान के अष्टम अनुसूची में शामिल कर दिया | डॉक्टर झा की मेहनत रंग लाई और मैथिली को राष्ट्रीय पहचान मिली |

जैसे जैसे सफलता मिलती गयी डॉक्टर झा और निखरते चले गए | उनका दायित्व और बढ़ता चला गया | मैथिली को अष्टम अनुसूची में जगह मिलने के बाद लोग अब मैथिली भाषा को संघ लोक सेवा आयोग में वैकल्पिक विषय के रूप में रखने लगे | इसके बाद डॉक्टर झा की जवाबदेही और बढ़ते चली गयी | मैथिली भाषा से डॉक्टर झा को प्रेम इतना था कि उन्होंने गरीब छात्रों को निःशुल्क मार्गदर्शन देना शुरू किया |

सबसे ताज्जुब की बात तो यह थी कि मैथिली भाषा को उन्होंने दूसरे राज्यों में भी पहचान दिलाई | राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और बिहार के दूसरे जिले के छात्रों को भी उन्होंने मैथिली भाषा से सफ़लता दिलवाई | यह अपने आप में चौंकाने वाली बात थी | जिस जगह पर कभी किसी ने मैथिली भाषा का नाम तक नहीं सुना वहाँ डॉक्टर झा ने अपनी मेहनत, लगन और परिश्रम से उस भाषा को न सिर्फ़ पहचान दिलाई बल्कि छात्रों को सफलता की लाइन में खड़ा भी करवाया | यह अपने आप में एक चमत्कार से कम नहीं है |

अभी तक डॉक्टर झा सैकड़ो छात्रों को अपने मार्गदर्शन से सफलता दिलवा चुके है | डॉक्टर झा बताते है कि वह गरीब छात्रों और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों से पैसे नहीं लेते है | क्योंकि उन्होंने गरीबी देखी है | इसलिए वह चाहते है कि लोगों का जितना भला उनसे हो पाएं वह हमेशा ही उनकी मदद करने के लिए तत्पर रहते है | आज के समय में डॉक्टर झा किसी फरिश्ते से कम नहीं |

ऐसे लोगों की संख्या समाज में कम जरूर है लेकिन ऐसे लोगों की हिम्मत और संकल्प को देखकर जीवन में कुछ करने की कल्पना सभी को मिलती है | अपनी मातृभाषा से इतना प्रेम शायद ही किसी को होता होगा |

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