आदिवासी समाज का गौरव छिंदवाड़ा में जन्में क्रांतिकारी बादल भोई की कहानी
गुमनाम नायक/ बादल भोई
भारत देश की भूमि कई वर्षों की गुलामी, अनेकों महापुरुषों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बाद आज स्वतंत्र आकाश में नित्य नई चमक रही है। देश के इस सुनहरे पलों के लिए कई लोगों ने अपने जीवन को आज़ादी के लिए झोंक दिया। देश में आज भी ऐसे कई स्वतंत्रता सेनानी हैं, जो स्थानीय स्तर पर ही लोगों द्वारा जाने जाते हैं। ऐसे ही एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। बादल भोई, नाम सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है न , भोई कोई सरनेम नही ये एक उपाधि है। जो महान क्रांतिकारी बादल भोई को उनके समर्थकों ने दिया, भोई का अर्थ जमींदार मालगुजार या सम्मानीय व्यक्ति है। बादल भोई का जन्म मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की परासिया के डुंगरिया पंचायत के तीतरा ग्राम में हुआ था। वैसे तो बादल भोई की जन्म तिथि का कोई विशेष ज्ञान तो नहीं पर कुछ एक अभिलेखों के अनुसार उनका जन्म 1845 में हुआ था।
गांधी की छिंदवाड़ा जिला यात्रा में भोई से हुई मुलाकात
6 जनवरी 1921 में जब महात्मा गांधी का छिंदवाड़ा आगमन हुआ। तब बादल भोई के नेतृत्व में हजारों की संख्या में जनजाति समुदाय उनसे मिलने पहुंचा, वह गांधी के विचारो से प्रभावित भोई जो की अब तक सिर्फ सामाजिक नेतत्व के तौर में प्रख्यात थे. देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कार्य करने लगे।
अन्य जनजाति समुदाय के लोगों के तरह ही बादल भोई की शिक्षा भी कुछ खास नहीं थी. पर उनका व्यक्तिव, लोगों को प्रभावित करने वाले विचार, एक खास प्रकार की नेतृत्व क्षमता ने उन्हें आदिवासी समुदाय में प्रख्यात कर दिया। भोई की नेतृत्व करने की क्षमता और हजारों लोगों के जनसमर्थन की वजह से अंग्रेजो से संघर्ष करने में सफलता मिली। भोई के समय में छिंदवाड़ा जिले में बेस्किमती लकड़ी और कोयले की मात्रा अधिक पाई जाती थी। ऐसे में अंग्रेज सरकार यहां के कोयले और लकड़ियों के लिए स्थानीय लोगों को मजदूर के रूप में कार्य में लेते थे और उनके ऊपर अत्याचार करते थे। अंग्रेजो द्वारा अत्याचार प्रकृति की संपति को नुकसान पहुंचाने से व्यथित भोई ने अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे।
1923 में अंग्रेजो के जमाने के कलेक्टर भवन का घेराव करके सरकारी खजाने को उनके द्वारा लूटने की घटना से अंग्रेजो ने उन्हे गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। रेल रोको आंदोलन और कई अन्य आंदोलन को नेतृत्व करने के कारण अंग्रेजो की आखों में चुबने लगे,उनकी तलाशी होने लगी पर आदिवासी और जंगली क्षेत्र होने की वजह से वह गुफाओं में जाकर छुप जाया करते थे। वही से स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करते थे।
21 अगस्त 1930 को जब वह छिंदवाड़ा में रामकोना ग्राम में अंग्रेजो द्वारा बनाए वन अधिनियम कानून का विरोध करने के लिए गए वह उन्हे वन उत्पाद अधिनियम कानून का उलंघन में अंग्रजों द्वारा उन्हे गिरफ्तार कर लिया। भोई को चंदपुर महराष्ट जेल में अंग्रेजो द्वारा उत्पीड़ित और प्रताड़ित किया जाने लगा। उनकी क्षेत्र में लोकप्रियता बढ़ते जा रही थी।भोई की लोकप्रियता से डर कर अंग्रेजो ने बादल भोई के खाने में जहर देकर मार दिया।
छिंदवाड़ा में बादल भोई के नाम से आदिवासी संग्रहालय है मौजूद
छिंदवाड़ा में स्थित एक मात्र जनजाति संग्रहालय को तत्कालनीन सरकार ने 8 सितंबर 1997 में बादल भोई के नाम में रखने की घोषणा की। बादल भोई आदिवासी संग्रहालय में जनजाति समुदाय के रहन सहन संस्कृति कलाकृति की विशेष जानकारी प्राप्त होती है। ये आदिवासियों जनजाति के सभी संग्रहालय में सबसे पुराना है। आज बादल भोई के नाम से कई शासकीय संस्थाएं मौजूद है। फिर भी बादल भोई को राष्ट्रीय स्तर में पहचान प्राप्त नहीं हुई जिसके वह हकदार थे।
One Comment