मौर्य साम्राज्य कालीन रायसेन जिले में स्थित सांची बौद्ध स्तूप का इतिहास और बौद्ध धर्म में भूमिका
पर्यटन स्थल/सांची बौद्ध स्तूप
तीसरी शताब्दी में निर्मित यूनेस्को में दर्ज विश्व धरोहर साँची का स्तूप पर्यटकों के लिए एक खास जगह है. इतिहास में दर्ज साक्ष्यो के अनुसार मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने इसका निर्माण वर्तमान में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 46 किमी दूर साँची गांव में करवाया था. इस स्थान में छोटे बड़े कई स्तूप मौजुद है कहा जाता है, सम्राट अशोक ने इसके निर्माण का कार्य अपनी पत्नी महादेवी सख्य्कुमारी को सौपा था. महादेवी सख्य्कुमारी विदिशा के एक व्यपारी की पुत्री थी. विदिशा जिला साँची से काफी करीब है और ऐसा दावा किया जाता है सम्राट अशोक और महादेवी सख्य कुमारी का विवाह साँची में ही हुआ था.अशोक की पत्नी सांची को काफ़ी अच्छे तरीके से जानती थी.उस समय साँची स्तूप का निर्माण में ईटो का उपयोग किया गया था.फिर कुछ काल खंड बाद पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म के प्रतीक स्थल साँची के स्तूप को नष्ट करने की कोशिस की.
इतिहासकारो के अनुसार मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहदत से उसके सेना नायक पुष्यमित्र शुंग ने विद्रोह करके उसे मार डाला और एक नए राजवंश की नीव डाली. उसी शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग को लेकर कुछ इतिहासकारो का मत है के वह कट्टर धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था उस काल में भारत से गुम हो रही वेदिक सभ्यता का पक्षधर और समर्थक था इसलिए उसने अपने शासन काल में बोद्ध धर्म के सभी स्मृतियों को नष्ट करने की कोशिस की. जिसमे साँची ग्राम में स्थिति बौध्द स्तूप का उल्लेख मिलता है. उसके शासन काल पश्चात शुंग के पुत्र अग्निमित्र जो की उसके शासन काल में विदिशा जिला का उपराजा हुआ करता था उसने इसका पुननिर्माण करवाया जिसमे पत्थरो का उपयोग किया गया. जो की पहले ईट द्वारा निर्मित था वह बाद में पत्थरो का स्तूप हो गया.
अग्निमित्र के शासन काल के बाद कई शताब्दियों तक स्तूप की कोई खोज खबर नही थी. फिर सन 1818 मैं अंग्रजो की कंपनी ईस्ट इंडिया के भारत आगमन के बाद एक अंग्रेज अफसर टेलर ने इसकी खोज की जिसके बाद एक अन्य अंग्रेज अफसर ने 1912 में इसका पुर्ननिर्माण करवाया. और 1919 के आते आते सर मार्शल ने इसके संरक्षण के लिए पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना की जिसके बाद साँची में स्थित बौध्द स्तूप पुरातत्व संग्रहालय बन गया. 1989 में विश्व धरोहर की सूची में इसे शामिल किया गया.
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स्तूप निर्माण का इतिहास…
स्तूप का निर्माण करने का मुख्य उद्देश्य इतिहास में वर्णित कहानी के अनुसार बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध की अस्थियां, अवशेषों व अन्य पवित्र वस्तुओं को यादगार के रूप में सुरक्षित रखने के लिए बनाये गए हैं, हालाकि सांची में स्थित बौद्ध स्तूप में गौतम बुद्ध से संबंधित किसी भी प्रकार के अवशेष प्राप्त नहीं होते मगर इतिहासकारों के मतनुसार यहां बुद्ध के दो शिष्य सारिपुत्र और महामोग्गलान की अस्थिया रखी गई थी. जिसे एक अंग्रेज अफसर ने खुदाई करके प्राप्त कर लिया था और अपने साथ इंग्लैंड ले गया फिर भारत की आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू भोपाल नवाब हमीदुल्ला खान, महाबोधि सोसायटी श्रीलंका के संयुक्त प्रयास से इसे वापस भारत लाया गया यहां पुनः स्थापित किया गया.
आज इस विश्व धरोहर और बौद्ध स्थापत्य शैली में निर्माण इमारत स्तूप को देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते है.साल के एक दिन स्तूप में स्थित दोनों बुद्ध शिष्यों की अस्थियां देखने के लिए निकाली जाती है. अस्थि कलशों की कलश यात्रा निकाली जाती है, और मुख्य स्तूप की परिक्रमा लगाई जाती है। जिसमें सम्मलित होने बौद्ध धर्म के अनुयायी देश विदेश से सांची पहुंचते है.
कैसे पहुंचे सांची स्तूप देखने – यादि आप कभी भोपाल घूमने आए तो सांची में स्थित बौद्ध स्तूप घूमने की योजना अवश्य बनाए. ये बौद्ध स्थापय कला और पुरातत्विक विश्व धरोहर आपके पर्यटन का बेहतरीन अनुभव होगा.
निकटतम बस स्टैंड : रायसेन बस स्टैंड जो सड़क नेटवर्क के माध्यम से भारत के सभी स्थानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
निकटतम रेलवे स्टेशन : निकटतम स्टेशन भोपाल है, रायसेन से 47 किमी की दूरी पर और हबीबगंज स्टेशन से दूरी 45 किमी है।
निकटतम हवाई अड्डा: रायसेन में कोई हवाई अड्डा नहीं है, और निकटतम हवाई अड्डा भोपाल है, जो रायसेन से 55 किलोमीटर की दूरी पर है।
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