मध्यप्रदेश के ग्राम बीजागोरा की बावड़ी – स्थानीय लोगों का दावा इसमें मौजूद गुप्त सुरंग के रास्ते का नही है छोर
विरासत/ पुरात्विक इमारतें उनका महत्व
भारत का इतिहास सहस्त्र वर्ष पुराना माना जाता है. यहां बसने वाली सभ्यता आज भी विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है.भारत के अंदर ऐसे कई पुरातत्विक महत्व की सभ्यता चाहे वह सिंधु सभ्यता हो या मोहनजोदड़ो ,वैदिक सभ्यता समय समय में अवशेष मिले. वर्तमान में इन अवशेषों के माध्यमों से जानने कोशिश रही है की हमारे पूर्वजों द्वारा अपनी संस्कृति मानव जीवन विकास के लिए क्या प्रयत्न किए गए. भारत में मौजूद कई ऐसी पुरातत्विक इमारतें हैं बावड़ी गुफाएं है. जिसके ऊपर निरंतर शोध चल रही है. उनके जीर्णोद्धार के कार्य किए जा रहे है ताकि आने वाली पीढ़ियों और वर्तमान समय में जो हमारे पूर्वजों ने स्थापत्य शैली वास्तु का अलौकिक उदारण प्रस्तुत किया है,
कैसे ? जमीन के अंदर पानी की व्यवस्था के लिए उनके द्वारा कई मंजिल इमारतों के रूप में बावड़ियों का निर्माण किया गया आज हजारों वर्षों बाद भी उनकी स्थिति परिस्थिति में कोई ज्यादा फर्क पड़ा नही है. ये बावड़ियों की मजूबती उनके निर्माता के बेहतरीन Architecture होने का प्रमाण है. इस लेख में हम मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के ग्राम गांगीवाडा से कुछ किमी दूरी में स्थित बीजगोरा पंचायत में मौजूद बावड़ी की कहानी लेकर आए है..
बीजागोरा में मौजूद ये बावड़ी का इतिहास क्या है यह के स्थानीय लोगों के पास इसकी ज्यादा जानकारी है नही पर उनके अनुसार ये बावड़ी इस ग्राम में हमारे बाप दादाओं से सुनते आए है की ये अंग्रजों के आने के पहले से मौजूद है.शायद इसका निर्माण राजा महाराजाओं के शासन काल में हुआ हो.सीढ़ीनुमा द्वारा में जमीन के नीचे एक इमारत के रूप में बनी इस बावड़ी के निर्माण में मिट्टी पत्थरों का उपयोग किया गया है. इसके अंदर से एक खुफिया मार्ग था जिसे बंद कर दिया गया. इस मार्ग के बारे में भी स्थानीय लोगों के पास ज्यादा जानकारी नहीं है. ग्राम में ही मौजूद 107 साल उम्र के बुजुर्ग शख्स पितुरु के अनुसार यह जो मार्ग था वह पहले से ही बंद है.उनके बाप दादा ने भी उन्हें ये ही जानकारी दी कुछ लोगों ने दावा किया की ये अंगेजो के समय की हो सकती है पर पितरू जी के अनुसार जब अंग्रेज भारत को छोड़कर जा रहे थे. 1947 के आसपास तब मेरा विवाह हुआ जितनी मुझे जानकारी मेरे पूर्व के लोगो से है. ये उस समय अंग्रेजो के द्वार नही बनाई गई थी.इस बावड़ी से निकलने वाला मार्ग अभी पूरी तरह बंद है. ईंटो की कच्ची जुड़ाई से रास्ता बंद है ये कब से बंद है जानकारी नहीं है. हो सकता है शायद ! इसका रास्ता गोड़वाना शासकों के महल देवगढ़ किला या उससे भी कई अधिक दूर जाता हो ऐसे में इस बावड़ी की जानकारी और सुध ली जाए तो यह गोंडवाना शासकों के इतिहास के बारे में जानने में काम आ सकती है.
आपको जानकारी दे गोंडवाना शासकों ने देवगढ़ किला जिला मुख्यालय छिंदवाड़ा से 42 किलोमीटर की दूरी पर विकास खंड मोहखेड़ के देवगढ़ ग्राम में 650 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर यह किला निर्माण किया था. जो देवगढ़ किले के नाम से जाना जाता है।यह किला घने जंगलों के साथ ही चारों ओर एक गहरी खाई से घिरा हुआ है।यह किला 16वीं सदी में गोंड राजाओं द्वारा निर्मित माना जाता है। देवगढ़ का कोई प्रत्यक्ष लिखित इतिहास प्राप्त नहीं होता है। परंतु बादशाहनामा व अन्य मुगल साहित्य में देवगढ़ की चर्चा की गई है। अकबर के समय देवगढ़ पर जाटवा शाह राज्य करते थे.
बीजागोरा ग्राम में मौजूद ये बावड़ी और इसमें मौजूद खुफिया रास्तों का दावा और इतिहास में तनिक भी सच्चाई हो तो ये पुरात्विक धरोहर काफ़ी उपयोगी साबित हो सकती है.बावड़ी के बारे में इतिहास में वर्णित जानकारी के अनुसार बावड़ी उन सीढ़ीदार कुँओं या तालाबों को कहते हैं जिन के जल तक सीढ़ियों के सहारे आसानी से पहुँचा जा सकता है। बावड़ियां हमारी प्राचीन जल संरक्षण प्रणाली का आधार रही हैं. दूर से देखने पर ये तलघर के रूप में बनी किसी बहुमंजिला हवेली जैसी दृष्टिगत होती हैं। कई बावड़ियों में ऐसे कई खुफिया रास्ते होते है जो उस समय राजा महाराजाओं द्वार अपने महलों राज्यों से बाहर निकलने के लिए बनाए जाते थे. ऐसे ही दावे बीजागोरा ग्राम पंचायत में मौजूद बावड़ी को लेकर किए जाते है।