पर्यावरण वार्ता

CND WASTE (विध्वंश अपशिष्ट ) भारत के पर्यावरण सिस्टम के लिए बड़ा खतरा

पर्यावरण। भारत आज विश्व में सबसे तेजी से बढ़ता निर्माण क्षेत्र उद्योग है. भारत के कोने- कोने में मेट्रो शहरों से ग्रामीण अंचलों में कंक्रीट बिल्डिंग इमारतें बड़े बड़े भवनों को बनाने के लिए कई तरह के निर्माण सामग्री उपयोग में ली जाती है. इन निर्माणधीन इमारतों और भवनों में बड़ी मात्रा में एक प्रकार का वेस्ट(waste) कचरा उत्पन होता है. जिसका सही निस्तारण उचित प्रबंधन की विधि और नीति आज भी भारत के पास मौजूद नहीं है. ज्यादातर बिल्डिंग इमारतों से निकलने वाला मेटेरियल वेस्ट कचरा खुले स्थान में छोड़ या फेक दिया जाता है.जो हवा के संपर्क में आने के बाद अक्सर हवा और पानी को दूषित करता है.निर्माण और विध्वंस कचरे को खुले में फेकने की वजह से निचले इलाकों में बाढ़ का पानी बढ़ जाता है और ये वायु प्रदूषण का कारण भी बनता है. जिसकी वजह से आज भारत के अधिकतर शहर जहरीली धूल का सामना कर रहे है.जिसकी CND कचरा एक बड़ी वजह है.

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क्या है .. CND WASTE अपशिष्ट !

किसी भी प्रकार का निर्माण गतिविधियों में वृद्धि होने से तोड़फोड़ एवं अन्य प्रक्रियाओं से निकलने वाले निर्माण विध्वंस अपशिष्ट जिसे आम बोलचाल में मलबा कहते है, CND WASTE कहलाता है. भारत में तकरीबन हर साल 150 मिलियन टन CND WASTE उत्पन्न होता है.कुछ समय पूर्व नोएडा में अवैध रूप से निर्माधीन इमारत ट्वीन टॉवर को जब ढहाया गया उस कार्यवाही के बाद अकेले उस बिल्डिंग से तकरीबन 80 हजार CND (सीएनडी) WASTE उत्पन्न हुआ. जिसके निस्तारण उचित प्रबंधन के लिए सरकार के पास कोई उचित विकल्प मौजूद नहीं है. हाल के समय में एक कंपनी सामने आई जिसने इस CND WASTE (अपशिष्ट) के कचरे में से 28000 टन को रिसाइलक्लिंग (पुर्ननिर्माण) में उपयोग लेना चाहती है.

हैदराबाद की कंपनी रामकी ग्रुप CND WASTE का उपयोग Recycle ♻️ करके बना रही टाइल्स पेपरब्लॉक

कंपनी की नोएडा रिसाइक्लिंग यूनिट में CND WASTE को रिसाइक्लिंग करके टाइल्स पैप्रब्लॉक बनाने का कार्य करती है.नोएडा ट्विन टॉवर से निकलने वाला waste के लिए कंपनी ने 15 साल का कॉन्टैक्ट किया जिसमें यूनिट प्रतिदिन 400 टन निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट को resycle करने की क्षमता रखती है.

CND WASTE अपशिष्ट की RECYCLING प्रक्रिया कैसी होती है?

प्लांट में सीएनडी वेस्ट कचरे को लाया जाता है इसके पश्चात इसमें पानी का छिड़काव किया जाता है.और एक हॉपर की मदद से waste (कचरे) के छोटे छोटे टुकड़े किए जाते है. पुनः पानी का उपयोग इसे धोने के लिए किया जाता है अंत में सीमेंट के साथ CND WASTE को मिलाकर टाइल्स और पेप्रबॉक का निर्माण किया जाता है. ये CND WASTE से निर्मित टाइल्स मार्किट में बिक्री की लिए तैयार हो जाती है. सारी प्रकिया जटिल होती है इसमें पानी का उपयोग बहुत अत्यधिक होता है ऐसे में कंपनी का दावा ये भी इसमें लगने वाले पानी का 70% उपयोग पुनः किया जाता है.

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सार : भारत में सालाना 150 मिलियन टन CND WASTE निकलता है.जो आने वाले वर्षों में और अधिक होने की संभावना है अभी वर्तमान स्थिति में पूरे सीएनडी वेस्ट के 1% हिस्से का उपयोग ही रिसाइलिंग में लिया जा रहा है. ऐसे में निरंतर CND WASTE भारत के पर्यावरण और ईको सिस्टम के लिए बड़ा खतरे के रूप में स्थापित हो रहा है. CND WASTE को लेकर आम जागरूकता उचित प्रबंधन इसमें कुछ हद तक रोक लगाने में कारगर हो सकता है पर वही CND WASTE की यूनिट के लिए पर्याप्त स्थान न होना बड़ी चुनौती है. ऐसे में जागरूकता के साथ नियम और सख्त कानून लागू करने की आवश्कता है।

The content is in syndication partnership with The Green Vibe, run by The Disposal Company. Disposal company एक नए जमाने का सस्टेनेबिलिटी स्टार्टअप है जो ब्रांडों को उनके plastic waste को ऑफसेट करने में मदद करता है और उन्हें प्लास्टिक-न्यूट्रल होने में सक्षम बनाता है।

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AD Sahu

अरविंद साहू (AD) Freelance मनोरंजन एंटरटेनमेंट Content Writer हैं जो विभिन्न अखबारों पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट के लिए लिखते है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सक्रिय है, फिल्मी कलाकारों से फिल्मों की बात करते है। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय माखन लाल चतुर्वेदी के भोपाल कैम्पस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र है।

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