राजस्थान का पारंपरिक गणगौर त्यौहार जो मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है
परंपरा/हिंदू धर्म/गणगौर
भारत विविधता और परंपरा का देश है.भारत के अलग – अलग भागों क्षेत्रों में निवासरत रहने वाले लोग अपने धार्मिक सांस्कृतिक आस्था स्वरूप मनाए जाने वाले त्योहारों को बड़े ही उत्साह के साथ मनाते है.भारत में रहने वाले नागरिकों में हिंदुओं की संख्या अत्यधिक है,और उन हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों की संख्या भी अधिक है.एक ऐसा ही पर्व राजस्थानी हिंदुओं के द्वारा मनाया जाता है गणगौर. राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों रतलाम सहित उसके आस पास जिलों में हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला बड़ा त्यौहार है गणगौर। महिलाओं द्वारा पूजे जाना वाला त्यौहार हिंदू मान्यता के अनुसार कहा जाता है इसे करने से विवाहित महिला के सुहाग की लंबी उम्र होती है. वही कुंवारी लड़की इसे अपने लिए अच्छा और मनचाहा वर प्राप्ति के लिए मनाती है.
गणगौर पर्व के पीछे की कहानी..
राजस्थान में हिंदू मान्यता के अनुसार जगत जननी देवी जगदंबा जब देवी पार्वती हिमालय राज के यह अवतरित हुई और उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की. तपस्या और उनके द्वारा व्रत रखने से देवाधिदेव महादेव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया था वर स्वरूप उन्हे भोलेनाथ शिव पति रूप में प्राप्त हुए. व्रत के प्रभाव से देवी पार्वती का विवाह भोले नाथ से संभव हुआ देवाधिदेव महादेव शिव ने देवी पार्वती को उस समय अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया.देवी पार्वती ने उस वरदान को भोलेनाथ से कहकर उन सभी महिलाओं के देने का अनुग्रह किया जो इस दिन देवी पार्वती और शिव शम्भू महादेव का विधि विधान से पूजा करेगा तब से लेकर आज तक गण के रूप महादेव और गौर के रूप में देवी पार्वती की जोड़े के रूप में पूजा जाने लगा और आज ये पर्व राजस्थान सहित देश के कई अन्य राज्यों में भी मनाया जाने लगा.
राजस्थान में 16 दिनों तक चलने वाले गणगौर की शुरुवात होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है. इसे राजस्थानी महिलाओं द्वारा सामुहिक रूप से मनाया जाता है इस त्यौहार को मानने की विधि के अनुसार गणगौर यानी भगवान शिव और देवी गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाएं जाते है। देवी पार्वती को सुहाद सामग्री और ऋंगार की वस्तुएं अर्पित की जाती है.भगवान शिव और गौरी देवी को चूरमे का भोग लगाने की परंपरा इस त्योहार में है. राजस्थानी महिलाएं गणगौर की कथा सुनती वही पारंपरिक गणगौर के गीत गाकर देव देवी की आराधना की जाती है.
गणगौर पर्व राजस्थान की परम्परा का निर्वहन करते आ रहा है. गणगौर त्यौहार में राजस्थानी महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत एवम नृत्य भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है. इसे राजस्थान और मध्यप्रदेश में लोक संस्कृति का आधार माना जाता है. पर्व की भव्यता से प्रभावित विदेशी सैलानी भी इसमें सम्मिलित होने के लिए राजस्थान में खींचे चले आते है।